’गुल’ जनाब खूब खिले इस चुनाव में। चप्पल, खड़ाऊँ, शूज चले इस चुनाव में। क्या-क्या न चली तिकड़मे पर हारना पड़ा, उल्टे कई रिजल्ट मिले इस चुनाव में। उम्मीद जिनकी थी नहीं, जीतेंगे क्या भला? जमकर उन्हीं को वोट मिले इस चुनाव में। कल तक सिखा रहे थे जमाने को जीतना, धरती धकेल चित्त मिले इस चुनाव में। वोटर रहे थे मौन पर, दर्पण दिखा दिया, औकात में विशिष्ट मिले इस चुनाव में। शक्ति का वोटरों की पता तब चला उन्हें, तेरह रहे न तीन मिले, इस चुनाव में। होगा बहुत ’सौदा बड़ा’ जो सोचते थे ’राज’, ’कौड़ी के तीन-तीन’ मिले, इस चुनाव में। |
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Saturday, August 8, 2009
"इस चुनाव में" (डॉ.राजकिशोर सक्सेना "राज")
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1 comment:
राज किशोर राज जी।
चुनावी माहौल पर लिखी इस कविता के लिए
बधाई।
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